शनिवार, 20 फ़रवरी 2016

ग़ज़ल

नींद के दरिया में ख़्वाबों की आती-जाती तुग्यानी -
मगर  हक़ीक़त  के सहरा  में  दूर  तलक है वीरानी -

मुश्किल  को  आसाँ करने वाले तो  मिलने आसाँ हैं
आओ  उसको  ढूँढ़ें  जो  मुश्किल  में  ढूँढ़े  आसानी -

चाहें ग़म बेचो या आँसू, या फिर बेचो ख्वाब, ज़मीर
हर शय की उतनी है कीमत, जितनी उसमें हैरानी -

उठती गिरती लहरों को तब से बोसे की लगी तलब
एक  दफ़ा जो चाँद  ने चूमी थी  दरिया की पेशानी -

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