दूर कोई कवि मरा है
जो मुखर संवेदना थी
आज कोने जा लगी है
थक चुका आक्रोश है यूँ
मौन इसकी बानगी है
अब इन्हें स्वर कौन देगा?
भाग्य का ही आसरा है
अनगिनत सी भावनायें
बीजता रहता है यह मन
किन्तु विरले जानते हैं
भावनाओं पर नियंत्रण
कब किसे है छाँटना और
कौन सा पौधा हरा है?
लेखनी जर्जर पड़ी है
पृष्ठ रस्ता तक रहे हैं
भाव, शब्दों से कहें अब
'हम अकेले थक रहे हैं'
पूर्ण है 'मुख' गीत का, पर
क्यों अधूरा अन्तरा है?