रविवार, 18 अगस्त 2013

गुलज़ार साब को जन्मदिन मुबारक़


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'पन्द्रह पाँच पचहत्तर' की

वो इक 'रात पश्मीने की'


जब करते हुए 'छैय्या-छैय्या'

कुछ 'ख़राशें' गई थीं 'रावी पार'

और फिर, पहनकर 'पुखराज'

'ड्योढ़ी' पर आ बैठे थे तीनों,

'रात, चाँद और मैं'..


बड़ी सुकून से गुजरी थी वो रात

तेरी नज्मों के साये में..

देखो, मुझे अब तलक याद है..

'जानम'...!


***

(नज़्म में प्रयुक्त कोटेशन वाले शब्द ('...') गुलज़ार के प्रसिद्ध काव्य और कहानी संग्रह हैं.)

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