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'पन्द्रह पाँच पचहत्तर' की
वो इक 'रात पश्मीने की'
जब करते हुए 'छैय्या-छैय्या'
कुछ 'ख़राशें' गई थीं 'रावी पार'
और फिर, पहनकर 'पुखराज'
'ड्योढ़ी' पर आ बैठे थे तीनों,
'रात, चाँद और मैं'..
बड़ी सुकून से गुजरी थी वो रात
तेरी नज्मों के साये में..
देखो, मुझे अब तलक याद है..
'जानम'...!
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(नज़्म में प्रयुक्त कोटेशन वाले शब्द ('...') गुलज़ार के प्रसिद्ध काव्य और कहानी संग्रह हैं.)