शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

ग़ज़ल - मैं कितनों के लिए पुल सा रहा हूँ




दिलों को जोड़कर रखता रहा हूँ -
मैं कितनों के लिए पुल सा रहा हूँ -

मैं लम्हा हूँ, मगर सदियों पुरानी 
किसी तारीख़ का हिस्सा रहा हूँ -

हज़ारों मस'अले हैं ज़िन्दगी में 
मैं इक-इक कर उन्हें सुलझा रहा हूँ -

ग़मे-दौरां में खुशियाँ ढूँढ़ना सीख
तुझे कबसे ऐ दिल! समझा रहा हूँ -

नहीं मुमकिन है मेरी वापसी अब 
फ़क़त शतरंज का प्यादा रहा हूँ -

तुम्हारे नाम का इक फूल हर साल 
किताबे-दिल में, मैं रखता रहा हूँ -

किनारे इक नदी के बैठकर मैं
'तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ' -

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