रविवार, 2 अक्तूबर 2011

ग़ज़ल - तिनका तिनका टूटा है



तिनका तिनका टूटा है-
दर्द किसी छप्पर सा है-

आँसू है इक बादल जो
सारी रात बरसता है-

सारी खुशियाँ रूठ गईं
ग़म फिर से मुस्काया है-

उम्मीदों का इक जुगनू
शब भर जलता बुझता है-

मंजिल बैठी दूर कहीं
मीलों लम्बा रस्ता है-

ख़्वाहिश जैसे रोटी है
दिल, मुफ़लिस का बेटा है-

किसकी खातिर रोता तू
कौन यहाँ पर किसका है-

गुरुवार, 5 मई 2011

सुबह, शाम और रात..



एक सुबह थी..
जब सपने में देख रहा था तुम्हें ही छुप-छुपकर
और फिर तुम्हारी ही आवाज से नींद खुली थी मेरी  
मानों धप्पा मारा हो किसी ने 'आईस-बाईस' में

एक शाम थी..
जब मेरी किसी बात से चिढ़कर तुमने कसकर एक
मुक्का मारा था मेरी पीठ पर और खुद ही रो पड़े थे
मानों कोई बच्चा गलती करके लिपट गया हो माँ से 

 
एक रात थी..
जब दो घंटे और तैंतीस मिनट बातें करने के बाद
'गुड नाइट' कहकर तुमने फोन रखा तो ऐसा लगा
मानों बीच में ही रुक गया हो कोई फेवरिट सा सौंग

 
सोचता हूँ, कभी मैं भी अमीर था कारूँ जितना
सोचता हूँ, कभी मुझ पर भी खुदा मेहरबान था 
***

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

विकर्षण

कभी पढ़ा था..
जब दूरियाँ कम
हो जाती हैं
एक हद से ज्यादा,
तो अणुओं में
विकर्षण होने लगता है..
तेरे-मेरे दरमियान
जो दरारें बनी थीं,
उनकी वज़ह मुझे
अब जाकर मालूम हुई..

बुधवार, 12 जनवरी 2011

ख़यालात की हदें



ये जो मेरे ख़यालात हैं न..


दरिया में तहलील बूंदों की माफिक

तुम में अपने मायने ढूंढते हैं..



ये चाहें धूप में पिघल जाएँ

भाप की शक्लें पहनकर

या मीलों कर लें परवाज़

कहीं बादलों में छुपकर



गुलाब की पंखुड़ियों से झांकें

ओस की शक्लों में

या फिर किसी टूटे पत्ते

की मानिंद उड़ते रहें इधर-उधर


ये बहुत कोशिशों के बाद

अब भी 'तुम' तलक ही पहुँच पाते हैं..


तुमने तो अब ख़यालात की भी हदें बाँध दी हैं...


(तहलील= विलीन / डूबा हुआ / immersed; मायने= अर्थ / meaning; परवाज़= उड़ान)