एक मुसलसल जंग सी जारी रहती है --
जाने कैसी मारा मारी रहती है --
एक ही दफ़्तर हैं, दोनों की शिफ्ट अलग
सूरज ढलते चाँद की बारी रहती है --
भाग नहीं सकते हम यूँ आसानी से
घर के बड़ों पर ज़िम्मेदारी रहती है --
इक ख्वाहिश की ख़ातिर ख़ुद को बेचा था
अब भी शर्मिन्दा ख़ुद्दारी रहती है --
साहब जी तो नारीवादी हैं, लेकिन
साहब के घर अबला नारी रहती है --
हम भी गुजरे थे इक दौरे लज़्जत** से
'इश्क़' नाम की जब बीमारी रहती है --
उस पगली का तकिया भी भीगा होगा
अपनी तबियत भी कुछ भारी रहती है --
अपनी तबियत भी कुछ भारी रहती है --
चादर ताने सोती है सारी दुनिया
मालिक ! तेरी पहरेदारी रहती है --
(*मुसलसल- लगातार, **दौरे लज्ज़त- मज़े का वक़्त/आनंददायी क्षण)
चित्र गूगल से साभार
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