
मैं इक, दो-शख्स हूँ...
खुद में उलझा हुआ...
खुद ही का इक अक्स हूँ...
हँसता हूँ सोचकर की कैसी है दुनिया...,
कभी रो पड़ता हूँ क्यूँ ऐसी है दुनिया...,
लोगों की इस भीड़ में भी...
बेलम्स बयाबां सा जो गुजरे...
वो इक लम्हा... इक वक़्त हूँ...
मैं इक दो-शख्स हूँ..